कल से धोती अम्मा जी की (नवगीत?
नवगीत –1
धोती कल से अम्मा जी की
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बाथरूम में
रखी बाल्टी
घर के कूड़ेदान सरीखी
निरमा -निरमा
खेल रही है
धोती कल से अम्मा जी की ।
नाती खेल रहा
सुबहा से
अब गुड्डे की अँगुली पकड़े
छत से आँख-
मिचौली करते
जिसके रंग बिरंगे कपड़े ,
खाट पकड़कर
चुप बैठा वह
किलकारी भरता है अवसर
दिवास्वप्न
छलता है माँ को
जाल बिछाकर ममता की भी ।
तोड़ रही ज्यों
धूप मई की
पीले पत्तों को टहनी से
व्यंग बान त्यों
दर्द चुराते
चोटिल अम्मा की कोहनी से ,
कल नाती को
पकड़ रही जब
था चौखट से गिरने वाला
सिलबट्टे से
टकराकर के
दरवाज़े के पास गिरी थी ।
अम्मा जी
बिस्तर पर लेटी
है ज़ख्मों पर लेप लगाकर
निशि के आँचल
में सोई ज्यों
बूढ़ी सन्ध्या करवट लेकर ,
आज बहू
वर्षा सी बरसी
स्नेहों को भिगो रही है
पीड़ाओं का
पेट भरा है
कल से भूखी पड़ी अँगीठी ।
रकमिश सुल्तानपुरी