कल शाम जो मैं टहल रही थी
कल शाम जो मैं बरामदे में टहल रही थी,
देखा मेरे घर के सामने जो बूढ़ा शजर खड़ा था,
मुझे देख मंद- मंद मुस्कुरा रहा था,
बाहें पसारे मुझे पास अपने बुला रहा था,
हौले- हौले कुछ तो वो गुनगुना रहा था,
मैं भी उसे देख खुल के मुस्कुराई,
बच्चों की तरह पास उसके दौड़ के गयी,
मेरी इस हरकत पे वो खूब खिलखिलाया,
और सर पर मेरे प्यार से हाथ अपना फेरा,
मैंने भी कुछ बातें करने को सोचीं उससे,
पूछा उससे बड़े ख़ुश लग रहे हो,
क्या बात है जो इतना मुस्कुरा रहे हो ??
मेरी बातों से उसकी आँखें चमकने लगीं,
उसने कहा, बुलाया तो बहुत किसी को था,
पर किसी ने मेरी नहीं सुनी, सब नज़र- अंदाज़
कर आगे बढ़ गए, पलट कर देखा भी नहीं,
आज तुम्हें जो बुलाया, बिना ना-नुकर
के ही दौड़ी चली आई,
आजकल किसी को मेरी परवाह नहीं है,
अब मेरी शाखों पर नये- नये पत्ते नहीं आते,
ना ही फूल लगते अब, न ही फल लगते हैं,
मैं जो अब सूखा ठूँठ सा हो गया हूँ, इस
लिए अब मेरे पास कोई नहीं आता, मैं
अकेला खड़ा उकता जाता हूँ, मेरा भी
बात करने को दिल चाहता है, हँसने को
दिल चाहता है, बच्चों के साथ खेलना चाहता हूँ,
सब मतलबी, खुदपरस्त हो गए हैं, मेरी अब
कोई फिक्र नहीं करता, लगे रहते हैं सब मोबाईलो में अपने,
मेरी तरफ कोई देखता भी नहीं है, मुझ बूढ़े की
फ़रियाद कोई सुनता नहीं।
गुज़ारिश है तुमसे,
यूँ ही रोज मुझ से मिलने आ जाया करो,
कुछ तन्हाई हमारी भी बाँट लिया करो,
कुछ वक़्त हमारे साथ भी बिताया करो,
गप्पे – शप्पे हम से लगा लिया करो, मेरा
भी मन बहल जायेगा, वक़्त कट जायेगा,
मैंने भी उससे वादा किया है,
अब रोज तुमसे मिलने आ जाया करूँगी,
बातों से अपनी तुम को खूब हँसाया करूँगी।।