कल के वीरान
कल के वीरान आज हो गए गुलजार ।
वक़्त कभी एक सा नहीं रहता ।।
बह जाती है बरसात में सूखी नदियां ।
कभी थम जाता है दरिया बहता ।।
गिर ही जाते हैं ये शबनम के मोती ।
सब्जा सर पर सदा नहीं सहता ।।
थक जाता है हमेशा कहने वाला ।
जिंदगी भर कोई कथा नहीं कहता ।।
टूट कर नीचे गिरेंगे यह भी ।
पेड़ भी अपने फल नहीं गहता ।।
चिंता करने से हल नहीं होता ।
सुधि इस आग में नहीं दहता ।।
जड़ें हो जिस दरख़्त की गहरी ।
झंझा – वातों में वह नहीं ढहता ।।