कल्पना चावला की स्मृति में
कल्पना से परे कार्य जो,, कल्पना ने कर दिखलाया।
भारत ही है विश्व गुरु यह,, पुनः विश्व को सिखलाया।।
करनाल में जन्म लिया,, और स्वयं काल को झेला था।
रखकर मुठ्ठी में प्राण स्वयं के,, जन्म-मरण से खेला था।
अंतरिक्ष से आने पर जब,, क्षण छा गया तिमिर घन-घोर घना।
सफल कल्प को करने वाला,, कोलंबिया कल्प का काल बना।।
नमन!!
——–भविष्य त्रिपाठी