Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Dec 2023 · 3 min read

कल्पना के राम

आज रात राम जी मुलाकात हो गई
मेरी तो जैसे लाटरी लग गई,
मैंने रामजी को नमन किया,
उन्होंने बड़े प्यार से मेरा हालचाल पूछा
और अनंत आशीर्वाद देकर मंत्रमुग्ध कर दिया।
सच कहूँ तो राम जी का आना अप्रत्याशित नहीं था
उन्होंने अपने पूर्व जन्म में मुझसे वादा किया था,
मेरे परिवार को दर्शन देने का आश्वासन दिया था
जब वो वन गमन कर रहे थे
और रास्ते में पड़ रहे
मेरे झोंपड़ेनुमा महल को नजरंदाज कर गये थे।
तब मुझे बड़ा दुख हुआ था
आहत होकर मैंने उनका पीछा भी किया था,
और उनसे शिकायतों का अंबार लगा दिया था।
अब राम जी तो ठहरे बड़े भोले भाले
अयोध्या वापसी के समय
मेरे महल पर आने का वादा जो किया था,
पर वापसी में फिर भूल गए
या अपने साथ भीड़ के कारण
मुझसे मिलने में संकोच कर गए।
जो भी रहा इतने दिनों बाद ही सही
आखिर आज तो रामजी आ ही गये।
उन्होंने अपना वादा तो निभाया,
विलंब के लिए खेद भी जताया,
सच कहूँ तब मैं इतना शर्माया,
कि क्या कहूँ समझ नहीं आया।
फिर मैंने ही बात को आगे बढ़ाया
अपने मन में वर्षों से उठते सवाल
उनसे एक साँस में कह सुनाया।
उन्होंने बड़े शांत, संयंत भाव से मुझे देखा
फिर मुझे समझाया ऐसा ही होता है वत्स
और ऐसा आगे भी होता ही रहेगा,
कल तक जो मुझे काल्पनिक कह रहे थे
मेरे मंदिर निर्माण पर अब भी सवाल उठा रहे हैं,
आज वे भी मेरे दरबार में आने के लिए
निमंत्रण का इंतजार कर रहे हैं।
साथ ही आरोपों की जैसे तैसे बौछार कर रहे हैं
पर मन के चोर को वे चाहे जितना छिपा लें
तुम खुद ही देख लो
वे सब बड़े असफल हो रहे हैं।
मैं तो वनवास भी खुशी खुशी गया था
अपने जन्मभूमि और मंदिर के लिए भी मौन खड़ा था,
हर किसी को अपने अपने अनुरुप
सवालों का अब तो जवाब मिल गया
तुम सबके विश्वास का परिणाम सामने आ गया।
पर जिन्हें हम काल्पनिक लगते थे
वे अब खुद काल्पनिक होने की दिशा में बढ़ रहे हैं,
पर दंभ इतना कि आंख बंद कर अंधे बन रहे हैं
फिर भी सच्चाई को नकारते जा रहे हैं,
अंधे कुंए में खुद गिर रहे हैं,
बकरी की आड़ में खुद को महावत बता रहे हैं।
अपने बर्बादी की नींव मजबूत कर रहे हैं,
पुरखों की खोदी खाई में गिरकर दफन होने के लिए
खुद ही बहुत उतावले हो रहे हैं।
अपने काल्पनिक राम की माया आज भी
वे तनिक समझ नहीं पा रहे हैं,
भव्य मंदिर को देखकर भी कुछ नहीं समझ पा रहे हैं,
क्योंकि वे सब तो खुद को राम समझ रहे हैं
बाकी सब तो उन्हें रावण के वंशज लग रहे हैं
जबकि तुम खुद ही देखो, मैं क्या कहूँ?
हर किसी सब साफ़ साफ़ दिख रहा है,
आपस में मेल मिलाप की आड़ में
वे सब अपने अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं,
और आज भी मुझे कहाँ समझ रहे हैं?
यह और बात है कि खुद तो गुमराह हो ही रहे हैं
और मुझे भी गुमराह करने का असफल प्रयास,
दुनिया को दिखाने के लिए अभी तक कर रहे हैं
बुझते दिए की लौ बन फड़फड़ा रहे हैं,
अपनी कल्पना के राम को भी नजरंदाज कर रहे हैं।
मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा उन्हें देखता रहा
कुछ बोलने की हिम्मत न कर सका
बस हाथ जोड़े चुपचाप खड़ा था।
राम जी क्या कह रहे हैं बस यही विचार कर रहा था,
यह और बात है कि बिना राम जी के भी
मैं राम जी को अपने सामने देख रहा था,
और खुद को सबसे ज्यादा भाग्यशाली मान रहा था,
जय श्री राम जय श्री राम बोल रहा था
सीताराम सीताराम का मंत्र जप कर रहा था।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
1 Like · 151 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
अगर मैं कहूँ
अगर मैं कहूँ
Shweta Soni
सोचना नहीं कि तुमको भूल गया मैं
सोचना नहीं कि तुमको भूल गया मैं
gurudeenverma198
फितरत से बहुत दूर
फितरत से बहुत दूर
Satish Srijan
खोदकर इक शहर देखो लाश जंगल की मिलेगी
खोदकर इक शहर देखो लाश जंगल की मिलेगी
Johnny Ahmed 'क़ैस'
*भिन्नात्मक उत्कर्ष*
*भिन्नात्मक उत्कर्ष*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
एक छोटी सी बह्र
एक छोटी सी बह्र
Neelam Sharma
*लिखते खुद हरगिज नहीं, देते अपना नाम (हास्य कुंडलिया)*
*लिखते खुद हरगिज नहीं, देते अपना नाम (हास्य कुंडलिया)*
Ravi Prakash
*फ़र्ज*
*फ़र्ज*
Harminder Kaur
रूठकर के खुदसे
रूठकर के खुदसे
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
दिली नज़्म कि कभी ताकत थी बहारें,
दिली नज़्म कि कभी ताकत थी बहारें,
manjula chauhan
मां नर्मदा प्रकटोत्सव
मां नर्मदा प्रकटोत्सव
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
अहं का अंकुर न फूटे,बनो चित् मय प्राण धन
अहं का अंकुर न फूटे,बनो चित् मय प्राण धन
Pt. Brajesh Kumar Nayak
दो शे'र
दो शे'र
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
फिर क्यों मुझे🙇🤷 लालसा स्वर्ग की रहे?🙅🧘
फिर क्यों मुझे🙇🤷 लालसा स्वर्ग की रहे?🙅🧘
डॉ० रोहित कौशिक
Apni Qimat
Apni Qimat
Dr fauzia Naseem shad
लोट के ना आएंगे हम
लोट के ना आएंगे हम
VINOD CHAUHAN
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
*राष्ट्रभाषा हिंदी और देशज शब्द*
*राष्ट्रभाषा हिंदी और देशज शब्द*
Subhash Singhai
ज़हर क्यों पी लिया
ज़हर क्यों पी लिया
Surinder blackpen
जीवन की धूप-छांव हैं जिन्दगी
जीवन की धूप-छांव हैं जिन्दगी
Pratibha Pandey
4-मेरे माँ बाप बढ़ के हैं भगवान से
4-मेरे माँ बाप बढ़ के हैं भगवान से
Ajay Kumar Vimal
आधुनिक भारत के कारीगर
आधुनिक भारत के कारीगर
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
कैसे यकीन करेगा कोई,
कैसे यकीन करेगा कोई,
Dr. Man Mohan Krishna
श्रावण सोमवार
श्रावण सोमवार
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
अब मज़े बाक़ी कहाँ इंसानियत के वास्ते।
अब मज़े बाक़ी कहाँ इंसानियत के वास्ते।
*प्रणय प्रभात*
"बदल रही है औरत"
Dr. Kishan tandon kranti
*जी लो ये पल*
*जी लो ये पल*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
तेरी - मेरी कहानी, ना होगी कभी पुरानी
तेरी - मेरी कहानी, ना होगी कभी पुरानी
The_dk_poetry
चुनना किसी एक को
चुनना किसी एक को
Mangilal 713
Loading...