कलेवा
लोहे की कड़ाही का,
कलेवा खाना छोड़ा जबसे।
तन को बीमारी ने,
मनुज को लिया जोड़ा तबसे।
सुबह की दातून छूटी,
आपस में बातून छूटी।
तांबे का लोटा छूटा,
अनाज मोटा छूटा।
होली में रंग नहीं है,
जीने का ढंग नहीं है।
अंदर से मन खाली है,
अंधेरे में दीवाली है।
अपनों से अपनों ने,
मुख लिया मोड़ा जबसे।
तन को बीमारी ने,
मनुज को लिया जोड़ा तबसे।
अभिलाषा है दूनी दूनी,
राहें दिखती सूनी सूनी।
हर तरफ सवाल जितना,
हर तरफ मलाल उतना।
आशा का अंबार देखो,
कितना है गुबार देखो।
इंसा इंसा से रूठ रहा है,
एक दूजे से छूट रहा है।
माता पिता से नाता,
जायों ने तोड़ा जबसे।
तन को बीमारी ने,
मनुज को लिया मोड़ा तबसे।