कली से खिल कर जब गुलाब हुआ
कली से खिलकर जब गुलाब हुआ,
नाचीज से बढ़ कर जब नायाब हुआ।
जुगनू सा,
जलता बुझता था आसमान में, तेरी रहमत हो गई ऐ मेरे कुदरत,
मैं तो जुगनू से आफताब हुआ।
कली से खिलकर . . . . . .
भीड़ में भी मैं अलग पहचाना जाता हूं,
तन्हाई में भी अकेला कहां पाता हूं।
सर्च कर लो,
लोकेशन सहित मिल जाता हूं।
कर्मयोगी हूं यारों,
मैं प्यार सभी का पाता हूं ।
नाम और शोहरत तेरी ही इनायत है,
हम तो चले थे अकेले, लोग जुड़ते गए
और पता ही नहीं चला,
कब राही से मैं कारवां हुआ।
कली से खिलकर . . . . . .
मैंने दुश्मन नहीं सिर्फ दोस्त बनाएं हैं, आशिर्वाद और दुवाएं ही पाएं हैं।
बलाएं आती भी है,
तो बहुत दूर तलक चली जाती है।
उसकी और मेरी तो जमती नहीं,
अरे वो कहां मुझे भाती है
अच्छे कर्मों का फल है यारों,
विपत्ति छूकर निकल जाती है।
मैं सब मानता हूं जो तेरी हिदायत है।
कोई बाल न बांका कर सके,
मैं ऐसा महफूज हुआ।
कली से खिल कर . . . . . .
नेताम आर सी