कली खिलती नहीं यारों
दवाई इश्क़ की जग में, कहीं मिलती नहीं यारों।
बने जो ज़ख्म गर दिल पर,कहीं सिलती नहीं यारों।
मुहब्बत की डगर में तो, मिले दुश्वारियाँ लेकिन-
बिना भँवरे के बागों में, कली खिलती नहीं यारों।
दवाई इश्क़ की जग में, कहीं मिलती नहीं यारों।
बने जो ज़ख्म गर दिल पर,कहीं सिलती नहीं यारों।
मुहब्बत की डगर में तो, मिले दुश्वारियाँ लेकिन-
बिना भँवरे के बागों में, कली खिलती नहीं यारों।