कलियुग
कलियुग
सूर्य समय पर अस्त हो गया,
जीव धूम्रमय मस्त हो गया ।
कलुषित सारा राग हो गया,
तिमिर वनों में काग खो गया । ।
घुमड़ित घन घनश्याम हो गये,
सावन में भी फाग हो गया ।
कलियों का बैराग देखिये,
काँटों से अनुराग हो गया । ।
गिद्ध गा रहे गीत सृजन के,
साँपों को वैराग हो गया ।
हिमशिखरों की शीतलता से,
मौसम सारा आग हो गया । ।
चंदन की खुशबू में पलकर,
मूषक काला नाग हो गया ।
कलियों से मकरंद खो गया,
गीत सिमटकर छंद हो गया ।।
दिनकर शशि का मीत बन गया,
ताँडव प्रिय संगीत बन गया ।
देखो कैसा गीत बन गया,
बैरी सच्चा मीत बन गया ।।
कामदेव संन्यासी बनकर,
वीतराग अविनाशी बनकर ।
शिव की लट से गंगाजल पी,
ब्रह्मा का प्रिय मीत बन गया । ।
चाँद खो गया सघन केश में,
रावण संन्यासी के वेश में।
मुर्दे हाहाकार कर रहे.
चोर भरे संतों के देश में ।।
विधि का देखो क्या विधान है,
डाकू बन गये सब प्रधान हैं।
कृष्ण पड़े हैं बन्दीगृह में,
कंसराज जन जन के मान हैं ।।
ब्राह्मण खाते माँस देखिये,
गऊ की अंतिम साँस देखिये ।
रावण है त्रैलोक्य विजेता,
राम चले वनवास देखिये ।।
विधि का तो संत्रास यही है,
किसने ऐसी बात कही है।
कलियुग में सब उल्टा होगा,
बेटा है पर बाप नहीं है ।।
सच्चा मैं पर आप नहीं है,
मैं जो करता पाप नहीं है ।
चोरी डाका झूठ डकैती,
कोई पश्चाताप नही है ।।
कैसा अब यह देश हो गया,
नकली सबका वेश हो गया।
महावीर बुद्धा गाँधी का,
झूठा सब संदेश हो गया ।।