कलाकृति बनाम अश्लीलता।
कलाकृति बनाम अश्लीलता
-आचार्य रामानंद मंडल
कला साहित्य मे संजु दास के कलाकृति आइ काल विवाद मे हय।कुछ लोग के दृस्टि मे कला मे अश्लीलता हय।असल मे अश्लीलता आ श्लीलता दृस्टिये होइ छैय।
संत तुलसीदास के अनुसार जाके रहि भावना जैसी हरि मूरत देखि तिन तैसी।
पौराणिक साहित्य के देखियौ त अश्लीलता से भरल हय। परंतु धार्मिक दृस्टि से वो अश्लील दृस्टिगोचर न होई हय। जेना भगवान शंकर के लिंगाकार रुप जेकर पूजा कैल जाइ हय।नागा साधु आ दिगम्बर जैन मुनि जेइ के दर्शन में अश्लीलता दृष्टिगोचर न होइ छैय। मां काली के नग्न मूर्ति में अश्लीलता दृस्टिगोचर न होइ हय।
सति अनुसूया के कथा एगो चर्चित कथा हय। अनुसूया के सतीत्व परीक्षा के लेल ब्रह्मा विष्णु महेश कहलथिन कि अंहा नग्न होके हमरा सभ के भोजन करायब त हम सभ अंहा इंहा भोजन करब।सति अनुसूया हुनका सभ के तप बल के आधार पर बच्चा बना दलथिन आ नग्न होके गोद मे रख के भोजन करैलथिन। कारण कि बच्चा निर्दोस होइ छैय।वो श्लीलता आ अश्लीलता से अंजान होइ हय।
बौद्ध कालीन मूर्ति अजंता -ऐलोरा आ भगवान जगन्नाथ आ दच्छिन भारत के मंदिर पर उत्कीर्ण मैथुन मूर्ति में अश्लीलता नजर न अबऐय हय। भगवान रजनीश संभोग से समाधि में एगो घटना के उल्लेख करैय छथिन।जौ एक युवा प्रेमी -प्रेमिका के प्रेमिका के माता -पिता मैथुन मूर्ति के देखैयत खजुराहो में टकरा गेलन। घटना इ बताबैत हय कि सापेक्ष रूप में अश्लील हय परंतु निरपेक्ष रूप में अश्लील न हय।
संजु दास के कला सापेक्ष रूप में लोग के अश्लील भले लगैय परंतु निरपेक्ष रूप से अश्लील न हय।कलादृस्टि निरपेक्ष होय के चाही।
-आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सह साहित्यकार सीतामढ़ी।