कलाकार
कुलवंत माँ बाप की इकलौती संतान पिता रघुवीर सिंह की इलाके में तूती बोलती थी उनके पास धन दौलत शोहरत ताकत और जन शक्ति भरपूर भगवान ने दिया था ।
पत्नी कलावती देवी जथा नाम तथा गुण कलाओं को खान नृत्य गायन में प्रवीण जवार में किस्सा मशहूर था कि कलावती देवी सरस्वती कि साक्षात दूसरा रूप है।
रघुबीर सिंह ने पत्नी के लिए कन्या विद्यालय खोल दिया था जिसकी कलावती सिंह सम्पूर्ण करता धरता तो थी ही वह जवार भर की लड़कियों को नृत्य और गायन की शिक्षा देती रही थी हालांकि उस दौर में लड़कियों की शिक्षा ही बहुत दुर्लभ और उनकी पकड़ पहुँच से दूर थी नृत्य गायन तो बहुत बड़ी बात थी ।
वह तो ठाकुर रघुबीर सिंह की ऊंची रसूख एव उनकी पत्नी का नृत्य गायन का प्रशिक्षण देने से कुछ परिवार प्रेरित होकर अपनी बेटियों को कलवावती सिंह के नृत्य गायन के क्लास में भेज देते
वरना लड़कियों का नृत्य गायन सीखना जैसे अभिशाप था।
कुलवंत सिंह रघुबीर सिंह कि विनम्रता शानो शौकत सौम्यता पर गया था तो माँ के गुण नृत्य एव गायन में उसकी खासी रुचि थी जो उसके पिता रघुबीर सिंह को कत्तई रास नही आती।
कुलवंत सिंह पिता रघुबीर सिंह के गुणसूत्रों से मेल कम खाता माँ कलावती देवी से उसके गुण शत प्रतिशत मेल खाते पिता रघुबीर सिह कुलवंत को आई पी एस अधिकारी या उच्च सैन्य अधीकारी बनाने की लालसा पाले हुए थे ।
कुलवंत को तो नृत्य एव संगीत में रुचि थी जब भी किसी प्रतियोगी परीक्षा या प्रतिस्पर्धा में कुलवंत असफल होता तब पिता रघुबीर सिंह उससे असफलता का कारण पूछते तब तब कुलवंत उनके हर प्रश्न का जबाब बेहद खूबसूरत और विनम्र अंदाज़ में देता थक हार रघुबीर सिंह कुलवंत सिंह से मात्र इतना ही कहते बेटे एक कहावत है #नाच न आवत आंगन टेढ़ा #
स्प्ष्ट है कि जब कोई व्यक्ति किसी काम मे असफल होता है तो असफलता की जिम्मेदारी न लेते हुए एव कुछ सीखने का प्रयत्न ना करते हुए कार्य की परंपरा प्रणाली में ही दोष निकालने लगता है।
जिसका साफ मतलब संदेश है कि असफलता से सीख कर सुधार करने के बजाय नुक्स निकाल दोषारोपण करना अज्ञानी बेवस विवश लाचार की पहचान है ज्ञानी एव दृढ़ व्यक्ति अपनी प्रत्येक असफलता से कुछ सीखते हुये अपेक्षित सुधार करता है जो उसे नई ऊर्जा एव ताकत देती है।
रघुबीर सिंह को विश्वास हो चला था कि उनका बेटा आई पी एस अधिकारी एव सैन्य अधिकारी तो बनने से रहा अब उसके नसीब में जो होगा वही वह करेगा ।
कुलवंत पिता की चिंता से बेखबर माँ कलवावती देवी के साथ नृत्य एव गायन का प्रशिक्षण लेता अभ्यास करता रघुबीर सिंह को बेटे की हरकत पर आश्चर्य होता वे अक्सर ही कहते ठाकुर परिबारो के नौजवान ऐसा कार्य करते है जो उनके कुल की मर्यदा के अनुरूप हो कुलवंत तो नाच गाना सीखकर जैसे बुजुर्गों की प्रतिष्ठा ही धूल धुसित कर रहा है
जब कोई ठाकुर रघुबीर सिंह से बेटे के बाबत कोई सवाल करता वह यही कहते भाई ईश्वर को जो भी मंजूर हो।
कलावती देवी कुलवंत की माँ ने बेटे को संगीत एव नृत्य कि बहुत उच्च स्तर कि शिक्षा देकर पारंगत किया और माया नगरी मुंबई क़िस्मत आजमाने के लिए भेज दिया।
मुम्बई में रहने के लिए बेटे को माँ कलावती देवी ने खरीदकर मकान ही दे दिया कुलवंत मुम्बई अपनी किस्मत के रास्ते खोलने के लिए दस्तक के लिए संघर्ष माया नगरी में करने लगा माँ कलवावती देवी उसके मुम्बई में रहने के खर्चे भेजा करती मुम्बई में कुलवंत प्रति दिन सुबह तैयार होकर इस स्टूडियो से उस स्टूडियो धक्के खाता आर्डिसन देता रिजेक्ट होता ।
माँ के द्वारा दी गयी नृत्य संगीत की शिक्षा माया नगरी मुम्बई के मानदंड पर खरी नही थी कुलवंत को माया नगरी मुम्बई गए पांच वर्ष हो चुके थे वह भी रोज रोज आर्डिसन देते देते एव रिजेक्ट होते होते ऊब चुका था वह गांव लौटने के विषय मे गम्भीरता से विचार करने लगा लेकिंन पिता रघुबीर सिंह का भय की क्या उनसे कहेगा कि माँ के द्वारा दिया गया ज्ञान हुनर बेकार हो गया उसके कदम रोक देता।
एक दिन थका हारा राजश्रीप्रोडक्शन में फिल्म की शूटिंग चल रही थी वह भी शूटिंग देखने वालों की भीड़ में खड़ा था सभी लोग शूटिंग देख रहे थे सह कलाकार जिसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी वह बार बार शॉट देता फ़िल्म प्रोड्यूसर एव निर्देशक उंसे रिजेक्ट कर देते सुबह से शाम हो गयी किंतु फ़िल्म का वह महत्त्वपूर्ण दृश्य शूट नही हो पाया पुनः दूसरे दिन भी वही कलाकार प्रायास बेकार तीसरे दिन भी वही हाल तीनो दिन जाने क्यो कुलवंत राजश्री प्रोड्यूसन के उस फिल्म की शूटिंग देखने गया ।
तीसरे दिन प्रोड्यूसर एव निर्देशक ने सह कलाकार केतन देसाई को बुलाया और कहा देसाई साहब आप यह सीन परफेक्ट नही कर पा रहे है मुश्किल से पांच से सात मिनट का दृश्य है यदि आप स्वंय अनुमति दे तो किसी दूसरे कलाकार से यह सीन कहानी में बहुत मामूली फेर बदल करके कराया जाय केतन देसाई को कोई आपत्ति इसलिये नही थी क्योंकि पूरे फ़िल्म में उनके लीड रोल से कोई छेड़ छाड़ नही हो रहा था।
अतः उन्होनें फ़िल्म प्रोड्यूसर एव निदेशक को वह विशेष दृश्य किसी भी दूसरे कलाकार से करा लेने कि अनुमति दे दी ।
जब यह बात कुलवंत को पता लगा कि प्रोड्यूसर एव निदेशक को फ़िल्म के अंतिम दृश्य के लिए किसी नवोदित कलाकार की तलाश है उसने स्वयं को उस रोल के लिये प्रस्तुत किया।
फ़िल्म निर्देशक मिस्टर गोयल एव प्रड्यूसर महादेव भाई बिंद्रा ने कुलवंत से कहा ठाकुर कुलवंत सिंह यह तुम्हारे गांव की जमींदारी नही है कि जो भी उल्टा सीधा हरकत करते जाय राईयत कि मजबूरी होती है बर्दास्त करेगी ही यह फ़िल्म है जिसमे अरबो रुपये का दांव लगा होता है और यदि फ़िल्म लागत भी न निकाल पाई तो दिवाला पिट जाएगा हम तो कही के नही रहेंगे और शायद तुमको मालूम ही होगा कि मुम्बई माया नगरी लाखो नौवजवान अपने खूबसूरत सपने संजोए आते है और मायानगरी के चकाचौध की अंधेरी गलियों के शिकार हो जाते है ।
बामुश्क़िल एक आध कोई नसीब वाला होता है जो अपने खूबसूरत सबनो कि ऊंचाई पर पहुंचता है कुलवंत बोला प्रोड्यूसर एव निदेशक महोदय आप जो सच्चाई बता रहे है उससे मैं वाकिफ हूँ माया नगरी के अंधेरी गलियों में इसलिये नही खो सका क्योकि मेरे परिवार कि आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत है मैं कुछ करूँ या ना करूँ मेरे जीवन पर कोई प्रभाव नही पड़ता हा कला मेरी माँ कलवावती का हुनर है जो उसने मुझे दिया है मैं उसे जलील नही होने देना चाहता हूँ और हा आपने तीन दिनों तक लगातार एक दृश्य को शूट किया और परफैक्ट नही हो सका मैं सिर्फ तीन चांस मांगता हूं यदि शॉट परफेक्ट नही हुआ तो मैं चला जानउँग और मैं आपसे कुछ मांग थोड़े ही रहा हूँ।
प्रोड्यूसर एव फ़िल्म डायरेक्टर ने आपस मे विचार विमर्श करने के बाद इस निर्णय पर पहुंचे की कुलवंत को एक मौका दिया जाना चाहिये और कुलवंत को फ़िल्म के अंतिम सिन के लिए जो सात मिनट का था मौका दिया कुलवंत ने शॉट दिया और प्रोड्यूसर एव निर्देशक द्वारा रिजेक्ट कर दिया गया कुलवंत बोला सर पहली बार कैमरे के सामने आने से कुछ घबराहट हो गयी थी बस एक अंतिम मौका दीजियेऔर बहुत गुस्से में दोनों बोले पता नही कहा कहा से कबाड़ चले आते है
#नाच न आवे आंगन टेढ़ा #
एक्टिंग का( ए )मालूम नही और चले आये फ़िल्म करने कहते है कैमरे के सामने घबड़ा गए पुनः प्रोड्यूसर एव डायरेक्टर ने कहा मिस्टर कुलवंत यह अंतिम अवसर है आपके लिए ।
शूटिंग शुरू हुए शूटिंग देखने वालों की की भीड़ लगी थी कुलवंत ने डायलॉग बोलना शुरू किया” मौत सच्चाई है बहाना बेवफाई है मौत आनी है क्या डरना भूख से आये गरीबी से आये बीमारी से आये इश्क मोहब्बत में आये दोस्ती दुश्मनी में आये जुनून जज्बे में आये आएगी जरूर बेवफाई का बहाना लाएगी जरूर क्या डरना आओ मौत को ही मोहब्ब्त की मासूका जिंदगी का जुनून और पैदाईस की सच्चाई मॉन दिल से इस्तेकबाल करते है उसी मासूका के आगोश के दामन में अमन हैं चैन है बेफिक्री है और खुदा से मिलने का इंतज़ार सफर है।
कुलवंत ने ज्यो ही शॉट पूरा किया शूटिंग देख रही भीड़ ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ शॉट और कुलवंत के एक्टिंग का सिनेमा की दुनियां में इस्तेकबाल किया फ़िल्म निर्देशक एव प्रोड्यूसर ने भी खुशी से तालियां बजाते हुए कुलवंत से कहा कुलवंत कला ज्ञान वही है जिसे आम जनता द्वारा सराहा एव स्वीकार किया जाय ना कि छिपी औऱ चिपकाई या थोपी गयी हो आज तुम फिल्मी दुनिया की बड़ी खोज हो अब यह इंडस्ट्री तुम्हारे नाम से सोयेगी जागेगी वास्तव में आपकी माँ कलवावती देवी ने अपने बेटे में जीवंत कलाकार को ही जन्म दे दिया है।
नन्दलाल मणि त्रिपठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।