– कलयुग –
– कलयुग –
कलयुग ऐसा आ गया,
भाई – चारे को खा गया,
लाज शर्म कही खो गई,
आधुनिकता का नंगा नाच हो गया,
आज कल के लड़के लड़कियां,
आधुनिकता उनको भाए,
आध्यात्मिकता से मुख फेर जाए,
फिरते बगीचे में हाथो में हाथ डाल,
लाज शर्म को छोड़,
अपने माता – पिता को नीचा दिखा रहे,
माता – पिता भी लाज शर्म में बच्चो को कहना छोड़ रहे,
कलयुग ऐसा आ गया
आध्यात्मिकता को खा गया,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान