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22 Dec 2020 · 1 min read

कलयुग

कलयुग ऐसा घोर है , होती असत्य जीत
चापलूस की मौज है , सीधा जाए बीत

अमीर होता धनी अब , पीकर निर्धन खून
वाह वाह रूपया की ,, मिले उसे नहि चून

राज महल से भवन है , गरीब उनके दास
आगे पीछे फिरे वो , झोपड़ जिनका वास

पुलिस प्रशासन धनिक के, मरे जहाँ निर्दोष
फंदा पड़ता उसी के , होय नहीं कुछ दोष

चक्कर अनेक करे पर , सुने नहीं फरियाद
कार्यवाही तन्त्र की , बढ़ा रही अवसाद

Language: Hindi
74 Likes · 327 Views
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