कलयुगी रक्तबीज
उग रहें हैं
रक्तबीज की तरह
एक के बाद एक
संविधान के हर गिरते लहू के साथ
थामते जाते
एक दूसरे का कन्धा
की लड़खड़ाते हाथों की पकड़
कहीं ढीली न पड़ जाए
तिरंगे पर
कि जिसकी शान पर
लुटा दिए पूर्वजों ने अपना सर्वस्व
वो कहीं धूमिल न हो जाए
खो न दे अपनी आभा
ये कलयुग के रक्तबीज
लड़ रहे हैं सामन्तवाद से
जातिवाद से अशिक्षा से
गाँधी अम्बेडकर आज़ाद के
उन विचारों के लिए
जो आत्मा हैं एकरसता की
अनेकता में एकता की
ये रक्तबीज यूँही
बढ़ते रहेंगे
अंधेरों से दीपक बन लड़
रहें हैं
यूँही लड़ते रहेंगे
बिना भेद के
सबके साथ सबके
अधिकारों के लिए
कंधे से कंधा मिला
ये कलयुगी रक्तबीज