कलयुग की पहचान
दिखाओ कुछ करो कुछ,यही कलयुग की है पहचान।
काले कारनामे करते रहे,यही नेक इंसान की पहचान।।
सत्ता को हासिल करने के लिए बेचो धर्म ईमान।
यही प्रजातंत्र में है,अच्छे नेता की अब पहचान।।
हंस चुगेगा दाना दुनका,कौवा मोती खायेगा।
बाप बेटी के घर में,बिन पैसे मौज उड़ाएगा।।
बेटा बाप को मारेगा,जूता सर पर वह चलायेगा।
बाप की चलने न देगा,अपनी ही वह चलायेगा।।
असली के नाम पे नकली बिकेगा कोई कुछ न कर पायेगा।
बात बात में रिश्वत खायेंगे,दोषी कलयुग में मौज उड़ायेगा।।
भ्रष्टाचार का होगा बोलबाला,सच्चे का मुंह काला हो जायेगा।
न्यायालय में न्याय बिकेगा,रिश्वत का बाजार गर्म हो जायेगा।।
फैशन का दौर होगा,घर घर में बालाएं नाचेगी।
बेटी बाप के संग,बार में मौज मस्ती उड़ायेंगी।।
लिखने को तो बहुत कुछ है,देता हूं अब कलम को विराम।
इस कविता को जनजन पहुंचाए शायद हो जाएं कल्याण।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम