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28 Mar 2020 · 1 min read

कलयुगी जमाना

आया कलयुग का जमाना
********************

आया है कलयुग का ज़माना
यहाँ पे नहीं हैं अपना बैगाना
अगला पिछला भूल कर बैठे
अध्धाय भूल गए सब पुराना

भूले हैं हंसना और मुस्कराना
खिले फूलों का जैसे मुरझाना
नूतन में पुरातन को भूले बैठे
प्राचीन छोड़ा है रहना सहना

मुख पर करते रहते तारीफ
शिकायत करते बाद तशरीफ
पाश्चात्य संस्कृति करें अर्जन
भारतीय संस्कारों का वर्जन

मन में नहीं है किसी का आदर
सदा अग्रज का करते निरादर
अनुराग छोड़ बन रहे हैं बैरागी
अस्त हो रहा यहाँ सूर्य पुराना

नशे रूपी गरल का करते सेवन
तज किए सुधा रुपी दुग्ध सेवन
सौम्यता अब अदृश्य हो रही है
लक्ष्य स्वभाव में उग्रता हैं लाना

सुखविन्द्र गुप्त हैं प्रेम भावनाएं
प्रकट करते जहरीली संवेदनाएं
चाहे जितना हो संस्कृति विस्तार
रहा यहाँ बस संक्षेप में बतियाना

सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
350 Views
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