कलम घिसाई 3 आज मै ऊँचे आसन पर
आज मैं ऊँचे आसन पर मसनद के सहारे बैठा हूँ।
देख जमीन पर लोगो को खूब घमन्ड में ऐंठा हूँ।
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इस आसन पर चढ़ने में पर कितना जियादा गिरा हूँ में।
पता नही किस किस के दर पर उनके चरणों में लेटा हूँ।
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मालूम मुझे था ज़मीरगीरी बेश कीमती वस्तु है ।
बेच उसी को आजू मैं बन बैठा कुबेर का बेटा हूँ।
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सच का गहना भी कभी मेरे इस तन को नही ढक पाया।
असत सहारे अंग अंग को मखमल से आज लपेटा हूँ।
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रहा अहिंसक जब तलक मैं बहुत ही सताया लोगों ने।
पर छोडे अहिंसा को बन बैठा मैं नकटो में जेठा हूँ।
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चोरि को पाप समझता था तब फांकानशी भी करता था।
जब माना चोरि खोट नही तो खाता मिठाई पेठा हूँ।
***********मधु गौतम
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