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17 Nov 2018 · 1 min read

कलम की स्याही सी माँ

माँ होती है जीवन की कलम में स्याही सी…
जो हमेशा प्रेम के रंग से लबरेज रहती है ,
जब लिखती है तो गढ़ देती है प्यार के शब्दो को…
मोतियों की माला में पिरोकर ,
जरा सी सूख भी जाये तो…
प्रेम की धूप पाकर ममता का रंग ,
पिघला जाती है माँ !!

माँ तो सब जानती है…
कब कहाँ उसकी कितनी जरूरत है ,
जब हम महसूस करते अब नही उसकी जरूरत…
या जानबूझकर भुला बैठते है उसकी अहमियत ,
कभी कभी खुद को वापस दवात में…
छुपा लेती है माँ !!

अपने बच्चों से चाहकर भी कुछ नही कह पाती है माँ..
इस दवात का ढक्कन थोड़ा खुला ही रहने देना ,
माँ है कलम की स्याही इसे गीली ही रखना…
सूख न जाये दवात में पड़ी पड़ी ,
उससे कभी कभी थोड़ा प्रेम गढ़ते रहना…
ताकि प्रेम की गर्माहट बनी रहे…
और स्याही अपना रंग दिखाती रहे ।।
नेहा भारद्वाज
बैंगलोर

9 Likes · 46 Comments · 468 Views
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