कलम कि दर्द
कभी किसी के गम को लिखा,
कभी किसी के सुख को लिखा,
कभी इंसानियत के लिये लिखा तो,
कभी हैवानियत के लिये लिखा…
आख़िर हूं तो मैं एक कलम।।
कभी अपनो के लिये लिखा,
तो कभी गैरों के लिये लिखा,
कभी समय से पहले लिखा तो,
कभी समय के बाद लिखा…
आख़िर हूं तो मैं एक कलम।।
कभी सपनो के लिये लिखा तो,
कभी सांसो के लिये लिखा,
कभी पेट के लिये लिखा तो,
कभी परिवार के लिये लिखा…
आख़िर हूं तो मैं एक कलम।।
एक कलम की चाहत ही क्या है?
सारी दुनियां के गम को सहना
और चुपके से लिखना, तथा
लिखकर अपने गम को कहना,
तभी तो मैं एक कलम हूं।
✍️:-Hareram कुमार (प्रीतम)