कलम का विश्वास
ए क़लमकार विश्वास तुम्हारा बना रहे ,
कण -कण में शब्द-शब्द मैं लिख दूंगी ,
यदि तुम पतंग डोर सी साथ रहो तो ,
मैं विराम को नभ से ऊंचा लिख दूंगी ।
गर तुम भाव लिखोगे हृदय के शब्दो मे
शब्दो को एक मंजुल छंद कर दूंगी ,
तुम लिखो सितम के गर व्यापक को ,
मैं तलवार कलम को कर दूंगी …
तुम दुख -दर्द लिखोगे यदि बेजुबानों के
मैं स्याही से अश्क़ जहां में कह दूंगी ..
तेरा मेरा घर साथ ,विश्वास बना रहे तो
हर दिशा में लहर क्रांति की कर दूंगी ..!!
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