कलम और तलवार
कलम या कि तलवार सज्य,
दोनों ही हों वीरों के लिए।
बढ़ाए हौसला लिखें गान गौरव,
दूजी शोभा बने रण के लिए ।
मान कलम का जग में बड़ा,
ज्ञान का नित विस्तार करती।
ओज गीतों में भर कर देश के,
वीरों का अमर गुणगान करती।
बनती शौर्य है वीरों का रण में,
शत्रु पर निज नित हुंकार भरती।
थरथराते देख शत्रु प्रहार तीक्ष्ण,
वीरों के गौरव को अमर रखती।
दोनों ही चलें धार तेज लेकर,
थाम लो चाहे जिसे सम्मान है।
एक रक्षा में चलने को सज्य है,
कलम लिखती अमर बलिदान है।
स्वरचित
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश