कलम आज उनको कुछ बोल
कलम आज उनको कुछ बोल
चुनाव पूर्व जो छत्तीस होते
चुनाव बाद तीरसठ हो जाते
इस छत्तीस तीरसठ के गणित में
दे अपना राय अनमोल.
कलम आज —————
प्रजातंत्र की अजब कहानी
छोटे दल की हो गयी मनमानी
मैंनडेट का शल्य क्रिया कर
हथिया लेते सत्ता अनमोल |
कलम आज————-
जनता भोली- भाली होती
छल- छद्म की समझ न होती
देकर वोट वर्ष पाँच तक
मतदाता, बन जाते बकलोल
कलम आज ———–
मिडिया भी हो गया अजीब है
रहता कहाँ किसी का अजीज है
जनता जाये, तो जाये कहाँ?
जब मिडिया बोले सियासी बोल
कलम आज ———-
नेता जी शातिर हैं ऐसे
नहीं डकारते खा सरकारी पैसे,
डुबे रहते दुराचार में फिरभी
बोलते सदाचार की बोल.
कलम आज ———–
खादी-खाकी में अजब है नाता
खा उपसर्ग दोनों को भाता
‘खा’ अक्षर का इज्जत रखकर
करते सारे विधि-विधान भंडोल.
कलम आज ——
सन सैंतालिस से चौबीस तक
नेहरु जी से नरेंद्र मोदी तक
लोक लुभावन नारा देकर
मतदाता से लेते वोट अनमोल
कलम आज ————–
वही गाँव, वही पगडंडी,
वही गरीबी, वही नर-मंडी
दिखा जनता को स्वप्न सुनहला
पीते नेता केसर-पिस्ता का घोल
कलम आज ————-