कर दिया समर्पण सब कुछ तुम्हे प्रिय
कर दिया समर्पण सब कुछ तुम्हे प्रिय,
बचा कुछ भी नही मेरे पास अब प्रिय।
तोड़ दूंगी सब रीति रिवाज तुम्हारे लिए,
समर्पित रहूंगी जीवन भर मै अब प्रिय।।
रीते हाथ चले आना मन मंदिर में प्रिय,
चंदन पुष्प रोली नही चाहिए मुझे प्रिय,
बस चुटकी भर सिंदूर ले आना तुम प्रिय,
भर देना इसको मेरी मांग में तुम प्रिय।।
क्यो समझते हैं घर में भार मुझे प्रिय,
अंधकार में लगता है भविष्य मुझे प्रिय।
पता नही प्रकाश की किरण दिखेगी मुझे,
अब तुम प्रकाश की किरण हो मेरे प्रिय।।
सुनाती हूं कल की घटना मै प्राण प्रिय,
अठखेलियां करता रहा चांद प्राण प्रिय,
कभी छिप जाता था वह मेघों में जाकर,
करती रही तुम्हारी प्रतीक्षा मै प्राण प्रिय।।
सावन भादो बरस कर चले गए प्रिय,
क्यो न आए अभी तक मेरे प्राण प्रिए।
सूख गई है अब तुम्हारी ये प्राण प्रेयसी,
अब तो बरस जाओ प्रियतम प्राण प्रिय।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम