कर्म ही पूजा
कर्म ही पूजा
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आज रीवा साईकिल एजेंसी का मालिक दिनेश बहुत खुश था।हो भी क्यों न,शादी के बारहवें साल में उसे बेटी जो हुई थी।उसकी खुशी देखते नहीं बनती थी।एजेंसी के सभी कर्मचारियों के लिए स्पेशल बोनस का ऐलान करने के साथ कर्मचारियों नहीं उनके बच्चों के लिए कपड़े मिठाई अलग से देने का हुक्म सुना दिया।सारे कर्मचारी आश्चर्य चकित थे कि शायद पहली बार अपने कर्मचारियों के बच्चों का ख्याल किया किसी मालिक को आया हो।
एजेंसी के ही कर्मचारी राजीव के मन में दिनेश के हर क्षण खुश रहने के कारणों तक पहुँचना चाहता था।दिनेश ये बात जानता भी था।
आज उसने सभी कर्मचारियों को एकत्र किया और बोला -साथियों!आज मैं आप सब को अपनी खुशी का राज बताता हूँ।
आप सभी को पता है कि मेरे माता पिता बहुत गरीब थे,फिर भी मुझे इंटर तक किसी तरह पढ़ाया।फिर वे बीमार रहने लगे।मजबूर होकर मुझे साइकिल की दुकान पर काम करना पड़ा।
दोस्तों!कभी आपने गौर किया कि मेरी एजेंसी में कभी कोई पूजा धूप अगरबत्ती नहीं होती,नहीं किसी देवी देवता का चित्र लगा है।तो वो सिर्फ इसलिए कि मैं पूरी ईमानदारी से कर्म को ही पूजा समझता हूँ।परिणाम आप सभी के सामने है।ये सिर्फ मुझ पर या व्यक्ति विशेष के लिए नहीं है।हर वो व्यक्ति जो ईमानदारी से अपना कर्म करता है।भगवान की पूजा का फल पाता है।
आप लोग शायद सोच भी नहीं सकते कि शादी के बारह साल तक माँ बाप न बनने का दुःख, लोगों के तानों,को झेलना आसान न था।मगर ईश्वर पर भरोसा था।मगर मैं या मेरी पत्नी ने कभी किसी मंदिर, मस्जिद, गिरिजा, गुरूद्वारा पर मत्था नहीं टेका।सिर्फ इलाज कराया।आज मेरा भरोसा मेरी बेटी के रूप मेंआपके सामने है।यही नहीं आप आश्चर्य करोगे कि मुझे अपने कर्म और भगवान पर इतना भरोसा था कि मैंनें सात साल पहले जब अपनी साइकिल की दुकान खोली थी,तभी दुकान का नाम अपनी बेटी के नाम पर ही रीवा रखा था।
मेरा सिर्फ इतना कहना है कि ईमानदारी धर्म है तो कर्म भगवान।सिर्फ़ कर्म करिए।बाकी सब भगवान पर छोड़ दीजिए।ये एजेंसी सिर्फ मेरी नहीं है,इस पर आपका भी हक है।क्योंकि ये हम सबके कर्म से चलती है।शिकायतें हो सकती हैं तो समाधान भी होगा।दुःख है तो सुख भी होगा।
बस! आप ईमानदारी से कर्म कीजिए बाकी का काम भगवान को ही करने दीजिये।
आप सभी को बहुत शुभकामनाएं।धन्यवाद।
@सुधीर श्रीवास्तव