जीवन और धुँआ
बुराई-भलाई फैलती है
बनकर के धुँआ..
ज़िस्म बनता है राख
कर्म बनता है धुँआ..
दफ़्न होती है राख
हवा में उड़ता है धुँआ..
ख़त्म हो जाती है राख
विचारों में जिन्दा रहता है धुँआ..
जमीन पर रहती है राख
अनन्त की यात्रा करता है धुँआ..
पृथ्वी पर गिरती है राख
शून्य में समा जाता है धुँआ..
मिट्टी में मिलती है राख
ब्रह्म में मिलता है धुँआ..
होना है राख या होना है धुँआ
ये तय तुझको करके चलना पड़ेगा ..