कर्म गति
यह जीवन की कड़वी सच्चाई है जब कोई करीबी मित्र , सगे संबंधी हमारे बीच स्थित होते हैं तो हमें
उनकी बातें मुश्किल से पसंद आती है ।अक्सर विचारों में टकराव होता रहता है ।हमें उनकी
किसी भी बात से उलझन होती रहती है ।यहां
तक के उसके जज़्बात भी हम ठीक से समझ नही पाते ,या समझना ही नहीं चाहते है ।इतनी फुर्सत भी
कहां है आज कल दौड़ती भागती जिंदगी में किसी को
समझने की या उसके विचारो और भावनाओकी कद्र
भी नहीं करते ।उन्हें पल पल नजर अंदाज करते है ।यह कहकर ” यह तो ऐसा ही है इसका क्या ?”
मगर जब वो हमारे बीच से कहीं दूर चला जाए ,
बहुत दूर ,अर्थात मृत्यु को प्राप्त हो जाए ।तब सब कुछ बदल जाता है ।हमारी चेतना तभी जागृत होती है उक्त व्यक्ति के लिए ।जीतेजी क्यों नहीं ।
क्यों हमें उसके बाद उसकी बातें, उसके विचार ,
उसके जज़्बात समझ में आते है ।और हम उसको
याद करकर के रोते हैं।उसकी कमी अपने जीवन में बड़ी शिद्दत से महसूस करते है। और जब वो हमारे बीच होता है तो उसके होने न होने का कोई फर्क ही नहीं पड़ता । आखिर ऐसा क्यों होता है ? यही अगर
दुनिया का असली चेहरा है तो असली क्या है ?
आखिर यह दिखावा क्यों? उन आंसुओं को क्या कहेंगे
जो उक्त व्यक्ति के गम में तो ना बह सके ।मगर उसके जाने के बाद ज़रूर गंगा जामुन बहा रहे है। जैसे हम
उसमें डूबकर पवित्र और पाप मुक्त हो जायेंगे।
पुराना जमाना कितना अच्छा था उसमें लोग
कितनी परवाह करते थे एक दूसरे की,भावनाओं की ,विचारो की । अब यह घोर कलयुग है ।तभी
लोगो के जीवन में इतने दुख और कलेश है ।पहले ज़माने के लोगों के जीवन सुखी और संपन्न होते थे ।
पैसों से नही ।अपने सुकर्मो से ।
अब तो ऐसा ही होगा जिसका जैसा कर्म उसे वैसे ही गति।