कर्म और ज्ञान,
कर्म और ज्ञान,
कार्य करें ,वह कर्म वीर हैं,ज्ञान रखें सो ज्ञानी।
तप करें वह तपसी बाबा, ध्यान धरें सो ध्यानी।।
ज्ञान बिनु कर्म अथुरा, कर्म बिना अधुरी ज्ञान।
ज्ञान, कर्म द्वी मिल जगत में,होता जगत कल्याण।।
द्वी मित्र चलें भ्रमण को,बीच नदी मझधार।
एक को तैरना आये, पर बुद्धि हीन बलवान।।
दुजे को ज्ञान रहा,पर तैयरन से अनजान।
गहरी नदिया नाव नहीं,कैसे करेंगे पार।।
ज्ञानी कहे, ज्ञान से,गहरी नदी है भाई।
डुब मरेंगे तैयरन बिना,लौट चलें घर जाई।।
तैयराक कहें अहं से,तैयरन को तैयार।
कहां गहरी, कहां उथली,था नहीं पहचान।।
लम्बी नदी,तैरना लगे,किया उलट सा काम।
उथले में तैरन लगें, और गहरे चले रेंगान।।
विजय कहे अपने लेख में, दोनों बात जरूरी है।
ज्ञान बिना कर्म अधुरा भव बंधन मजबुरी है।।
ज्ञानी कहे ज्ञान से ,गहरी नदी है यार।
तैयरन तो आता नहीं,कैसे लगाऊं पार।।
ज्ञान बिना कर्म अधुरा , कर्म बिना है ज्ञान।
ज्ञान , कर्म द्वी मिल जगत में,तब होइहैय पार।।
चक्षु बिना, प्रकाश अधुरा,प्रकाश बिन आंख।
एक दुजे का पुरक है,ज्ञान कर्म द्वी राख।।
डां, विजय कुमार कन्नौजे अमोदी वि खं आरंग जिला रायपुर छत्तीसगढ़