कर्फ्यू
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मेरे जिन्दगी पर कर्फ्यू का पहरा है।
आओ तुम इसे जल्दी हटाओ।
हतोत्साह से सारे रास्ते मेरे सामने हैं।
वहाँ चौराहे पर हो रही है मेरी हत्या।
सारे परिंदे अपने घोंसले छोड़ जा रहे हैं भागे।
मेरा तन और मन कर्फ्यू के शिकंजे में है।
आओ तुम इसे जल्दी हटाओ।
मैं तो सच बोला था
अपने शोषण का इतिहास खोला था।
युद्ध से पूर्व अस्त्र-शस्त्र मुझसे छिने थे।
न्याय-मन्दिर में मैंने यही तो गिने थे।
धुआँ उठ रहा है बस्ती के बीच
औरतें निकाली जा रही हैं बालों से खींच।
मुझे कर्फ्यू से मुक्त करो, प्रार्थना है।
मेरा देह शिथिल और आत्मा भ्रमित।
मैं चीत्कार कर चाह रहा था रोना
पर,समुद्र के जल सहसा गये सूख।
रोऊँ तो क्या और रोऊँ तो कैसे।
मेरा तन और मन कर्फ्यू का बंधक है।
आओ छुड़ाओ।
निराशा से भर गया।
तब मैं सहसा कवि हो गया।
उसने कहा-
तन और मन पर कर्फ्यू तूने
खुद ही लगाया था।
और मैं चौराहे की ओर दौड़ पड़ा।
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