कर्ज कभी ना उतरेगा
“कर्ज कभी ना उतरेगा”
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पहन बसंती चोले को, सीने पर खाई गोलियाँ ,
अपने वीर शहीदों ने, खेली खून की होलियाँ |
आजादी को गले लगाने ,निकली उनकी टोलियाँ,
इंकलाब के नारे को, बोली थी उनकी बोलियाँ ||
अपने लहू से सींच गये वो,आजादी के बाग को,
भारत माँ के ‘भाल’ सजाया,एक नये ‘महताब’ को |
शीश कटाकर झुकने ना दी,अपने सर की ‘पाग’ को ,
है क्या कोई ऐसा इंसा ? जो भूले ऐसी ‘फाग’ को ||
भूखे रहे ,हर जुल्म सहा,पर ! उफ तक भी ना कर पाये ,
तन-मन पर है घाव हुए , पर ! उनको वो ना भर पाये |
थी ‘आजादी’ प्यारी उनको , लौट के वो ना घर आये ,
कर दी अपनी जां निसार,और आँसू तक ना झर पाये ||
भारत के हर इंसा सुन लो,कर्ज कभी ना उतरेगा,
तुम भी ऐसा जोश भरो तो,अरि दूर से गुजरेगा |
ग़र नाग सा फण उठाए दुश्मन , तो “दीप” स्वयं भी कुचलेगा ,
‘गद्दार’ वही कहलाएगा , जो ‘देशभक्ति’ से मुकरेगा ||
– डॉ०प्रदीप कुमार “दीप”