कर्ज़
देख कर अपनी
धन की पोटली आज,
हुआ कुछ गुमान….
बैठ गई अकड़ के
करने सबका हिसाब
पर….
पर कैसे चुकाऊं ??
उन सांसों का ऋण
जो ले रही हूं
मैं हर पल, हर दिन ,
क्या दूं उस हवा को
जो निर्बाध दे रही
मुझे मेरा जीवन…..
और कैसे चुकाऊं ??
उस प्रसव पीड़ा का कर्ज
जिससे फूटा हर अंकुर
सजता मेरी थाली में,
क्या दूं उस धरा को
जिससे मेरे जीवन में
है हर पल मुस्कान…..
क्या मोल चुकाऊं ??
सूरज की उष्णता का
जो बिना देर किए,
हर रोज आता
मेरे घर द्वार….
पानी की शीतलता की
क्या लगाऊं कीमत ??
तुम अगर बता सको
तो मुझे भी देना सुझाव….
कैसे चुकाऊं ??
इनका एहसान जो
बिना एहसास दिलाए
बस दे रहे मुझे
हर दिन लगातार ।।