#रुबाइयाँ
देशभक्ति का भाव लिए चल , रिश्ते-नातों की पहचान।
मानवता के गीत लिए चल , संस्कारों की अंतर आन।।
आनंदित जीवन उसका हो , सबसे मिलके जो मंजीत;
गंगा यमुना सरस्वती का , संगम खींचे सबका ध्यान।।
परहित को जो भूले हरदम , अपने हित के गाये गान।
हुआ अँधा लालच के मद में , वो है ख़ुद से ही अनजान।।
भाव नहीं हैं औरों ख़ातिर , उर पाहन सम जड़ता मीत;
तन से मानव कहलाया वो , मन से बना नहीं इंसान।।
#आर.एस.’प्रीतम’