करूँ प्रकट आभार।
करूँ प्रकट आभार।
नूतन-किसलय, पुष्प-मनोरम
कलियों के मुख लाली,
केसर, परिमल,पवन-झकोरे
रची लचीली डाली।
भ्रमरों का गुंजार
करूँ प्रकट आभार।
झरनों में आता पर्वत से
छनकर निर्मल पानी,
भूतल ने पाया है रब से
दरिया और रवानी।
बेशुमार जलधार
करूँ प्रकट आभार।
अम्बर को दे मेघ घनेरे
धरती को नहलाया,
बीजों में भरकर जीवन-रस
खेतों को महकाया।
मिला अन्न-भंडार
करूँ प्रकट आभार।
ज्योतिपुंज से दूर निरंतर
तम की परतें काली,
करते आये हो युग-युग से
तू जग की रखवाली।
लिए कई अवतार
करूँ प्रकट आभार।
अवलोकन को लोचन सुन्दर
वाणी दी अनमोल,
बढ़ने को दीं बन्द सभी की
राहें तत्क्षण खोल।
नतमस्तक संसार
करूँ प्रकट आभार।
अनिल मिश्र प्रहरी ।