करवाचौथ
सजते करवा चौथ जब ,तकूँ गगन तब चाँद ,
सौलह सिंगार सजी मैं, करूँ पिया को याद
लाल हरी चूड़ियों से , निखरी कान्ति खास
इन्हीँ बन्धन बँधी है , प्रिये नाम की आस
पैरों पायल बाँध कर , महावर लूँ सजा
हुआ पिया से मिलन जब ,देख गयी मैं लजा
अवसर ऐसा मिला है , रचे मेंहदी हाथ
लाली अधरों सजी है , बिंदिया दमके माथ
छलनी देखूँ चाँद को , करूँ यही अरदास
उमर पिया की बढ़े नित , यहीं आपसे आस
पत्नी करती व्रत जब , मिले पिया का प्यार
यही धर्म का मूल है , यहीं प्रेम आधार
निश्छल रिश्ता रहे जब , चौगुन बढ़ती प्रीत
बाधा सारी दूर हो , पाते दोनों जीत