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18 Mar 2020 · 1 min read

करने लगा हूँ शायरी सर्दी-जुकाम पर

ना तो यकीं सुबह पे है ना तो है शाम पर
आकर खड़े हैं इश्क़ में ऐसे मुकाम पर

टूटा पड़ा था जोड़ा कितनी बार दिल मगर
आने नहीं दी आँच कभी एहतराम पर

जज़्बात तुझमें इतने सलीके से दिखे के
होने लगा भरोसा तिरे एहतमाम पर

तबियत खराब जब से हुई यार की मिरे
करने लगा हूँ शायरी सर्दी-जुकाम पर

बैठा जो दिल के तख्त पे मेरी अना के साथ
कैसे उठाऊँ उँगलियाँ ऐसे निजाम पर

तकलीफ़ क्यों दे हाथों को गर दिल नहीं मिले
जाओ तुम अपने काम पे हम अपने काम पर

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