करते हैं कत्ल
कुछ प्रश्न जो तैर रहे
मस्तिश्क पटल पर।
खड़े है कठघरो में, अपने ही लोग।
उलझनें भी है कि
साथ देकर प्रियतम का
सहें जुल्मों सितम सारे।
या कर दे बग़ावत
अपनी अर्न्तआत्मा के साथ होकर।
प्रश्न कुछ जटिल है
जो सोने नहीं देता।
किन्तु अब मैं जाग गयी हूॅ,
अपने कर्त्तव्य, अपने अधिकारों के प्रति।
मैं करूगीं विरोध उन सबका,
करते हैं कत्ल
हमारे विचारों, नवपरिवर्त्तन का।