कम न अब आँक बेजुबानी को
कम न अब आँक बेजुबानी को
पढ़ लिखी दिल पे इस कहानी को
प्यास अपनी कभी न बुझ पाई
पी लिया आँख के भी पानी को
कितनी ऊँची उड़ान भर ले तू
पर नहीं भूल सावधानी को
गलतियों को सुधार ले अपनी
रो नहीं बैठ कर पुरानी को
खो गया कार्टून में बचपन
जानता वो न राजा रानी को
‘अर्चना’ लाख कोशिशें कर ले
रोक सकता न तू जवानी को
डॉ अर्चना गुप्ता