कम्बख्त तू मुस्कुराती रही
मैं खाता रहा ठोकरें दर ब दर
और कम्बख्त तू मुस्कुराती रही
तूने बताया ही कब
सच और झूठ का फर्क
मैं तो वही बोलता रहा जिंदगी
जो तू सिखाती रही
वक्त आगे निकल गया तो
मैं क्या करूँ
ये बेईमान तो तब से भाग रहा है
जब मुझे बैठना भी नहीं आता था
जन्म के समय ही
निमंत्रण दिया था मैने
अपनी प्रेयसी मृत्यु को
एक वही तो थी अपनी
तुझसे तो जिंदगी
चन्द साँसों का ही नाता था