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6 Jul 2021 · 1 min read

कमाई और जकात

कुछ परिन्दे लौट कर आये हैं बाग में
यहां की खामोशी भी यही है और बात भी,

आज बादल बिना बरसे ही निकल गये
इन आँखों का ज़र्द भी तुम हो बरसात भी,

बुलन्दी पर तन्हा खड़ा ये जाना मैंने
मेरी जीत भी तुम हो और मात भी,

मैं क्या रखूँ और क्या दूँ किसी को
मेरी तो कमाई भी तुम थे जकात भी,

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