कमल ताल में वन पाखी तिर आए हैं
रक्तिम कोमल मेघ कहीं घिर आए हैं
विटप-विटप में नव पल्लव फिर आए हैं
अरुण पुरुष प्राची से देखो झांक रहा
कमल ताल में वन पाखी तिर आए हैं ।
किंशुक कुसुम विकस गया है डार डार
एकाकीपन निकस गया है पर पसार
अंग अंग में लिए शूल मुस्काए सेमल
लेकर वर्ण गुलाबी पुहुप फिर आए हैं
कमल ताल में वन पाखी तिर आए हैं ।
हरित वल्लरी लाज से थोड़ी भरी भरी
लिपट गई है विटप देह से डरी डरी
छूट चले हैं वृक्ष अंगों से पत्र सकल
सेज सजाने पथिक हेतु गिर आए हैं
कमल ताल में वन पाखी तिर आए हैं ।
अशोक सोनी
भिलाई ।