कभी संभालना खुद को नहीं आता था, पर ज़िन्दगी ने ग़मों को भी संभालना सीखा दिया।
कभी संभालना खुद को नहीं आता था,
पर ज़िन्दगी ने ग़मों को भी संभालना सीखा दिया।
कभी तो हल्की बातों से भी मन भर जाता था,
और हादसों ने हसीं का क़र्ज़, होठों पे लगा दिया।
कभी रात का ख्याल, नींदों को साथ लाता था,
पर इस लम्बी अमावस ने, दिन के उजालों का सपना जला दिया।
कभी बरसात में बेफ़िक्री का आलम गुनगुनाता था,
और ज़िन्दगी ने धूप में जलते पावों, को मुक्क़दर में सजा दिया।
कभी गुलमोहर भी सुकून की छाँव दिया करता था,
और ज़िन्दगी ने उसकी खुशबू को भी साँसों से चुरा लिया।
कभी एक वादा जो ज़िन्दगी भर निभाया जाता था,
ज़िन्दगी ने पलभर में, पलों से हीं उसका सौदा भी सीखा दिया।
कभी यादों को खुद से जुदा करना नहीं आता था,
और ज़िन्दगी ने उन यादों को हीं हमारा दुश्मन बना दिया।
कभी जिन एहसासों को जहन में सहेजा जाता था,
ज़िन्दगी ने शब्दों की स्याही से क्या खूब उनका रिश्ता बना दिया।