कभी धुप तो कभी छाव सी है ये ज़िन्दगी
कभी धुप तो कभी छाव सी है ये ज़िन्दगी
तो कभी बहती नाव सी है ये ज़िन्दगी
कभी मंझधार में लटकी तो
कभी किनारों की कश्ती है ये ज़िन्दगी
कभी चिरागों में रोशन तो
कभी काले स्याह में भटकती है ये ज़िन्दगी
कभी आसमां में उडती तो
कभी कटती पतंग सी है ये ज़िन्दगी
कभी रोती हुई सी है तो
कभी हंसती हुई सी है ये ज़िन्दगी
कभी आफताब सी चमक तो
कभी चाँद सी नर्म है ये ज़िन्दगी
कभी जख्म है तो
कभी मरहम है ये ज़िन्दगी
कभी कफ़स में कैद तो
कभी फैज़ है ये ज़िन्दगी
कभी अपनों का सा प्यार तो
कभी अपनों से तकरार है ये ज़िन्दगी
कभी प्यास सी है तो
कभी बेमौसम बरसात सी है ये ज़िन्दगी
भूपेंद्र रावत
3/08/2017