कभी झूठे कभी सच्चे लगते हो तुम।
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कभी झूठे कभी सच्चे लगते हो तुम।
आदत से पूरे बच्चे लगते हो तुम।
मौसम-सा तुम पल-पल रंग बदलते हो,
पर मन के कोमल कच्चे लगते हो तुम।
जलेबी-सा गोल-गोल घुमाना तेरा,
बिल्कुल बातों के लच्छे लगते हो तुम।
तुम हर पल मुझ से लड़ते ही रहते हो,
फिर भी इस दिल को अच्छे लगते हो तुम।
जिससे महका है मन का कोना-कोना,
ऐसे फूलों के गुच्छे लगते हो तुम।
? ? ? ? – लक्ष्मी सिंह ? ☺