कभी-कभी ऐसा लगता है
गीत
कभी-कभी ऐसा लगता है
कभी-कभी वैसा लगता है
संशय, भय, दुविधा के मारे
बोलें क्या, कैसा लगता है।।
दरवाजे पर भोर सुहासी
चौखट चौखट ज्यों हों दासी
पंछी का है घर बेगाना
उसका अपना नहीं तराना
निशब्द व्यंजना, शब्द हमारे
बोलें क्या, कैसा लगता है?
कस्तूरी है मन की उलझन
स्वर्ण मृग सा अपना जीवन
ललचाये सीता को वैसे
भटकाए राघव को जैसे
भरत समान कहां अब तारे
बोलें क्या, कैसा लगता है ?
पनघट पनघट प्यास अभागी
जलपरियों पर किरण सुहागी
एक दिवस राधा ने देखा
प्रेम अभागा,विधि का लेखा
विरह मिलन के पल हैं न्यारे
बोलें क्या, कैसा लगता है?
अपनी सांसें, अपना सरगम
अपना उदगम, अपना उद्यम
दो रोटी का उबटन यारा
पिसे पिसे गेहूं संसारा
कैसे कह दें, घुन है प्यारे
बोलें क्या, कैसा लगता है?
सूर्यकांत