कभी उतरे हो प्रेम की नदी में…..?
कभी उतरे हो प्रेम की नदी में…..?
यदि नहीं
तो अपने विरक्त से मन
की नाव को हवाले
करो बहती धाराओं के……
यकीन मानो
जीत तुम्हारी ही है……
तैर गए तो
तुम जीते…..
और यदि
डूबे तो
.तुम निश्चित रूप से जीते…….
प्रेम की नदी में उतरने
वाले की लकीरों में
हार कभी नहीं……
प्रेम में तैरना और डूबना
देवत्व को प्राप्त करना है…..
पाना या खोना
कुछ भी सत्य नहीं……
मात्र इस धारा के साथ
बहना ही परिपूर्ण है।
दीपाली कालरा