कभी आओ मेरे शहर में
कभी भूलो कभी भटको ,तो आओ मेरे शहर में
कभी जागो कभी भागो ,तो मिल लो दोपहर में I
कभी जब सांसें लगे ,पत्थर से अधिक बोझिल
कभी गुम होने की जो हो मन की कभी ख्वाहिश
संग हम हिलोरे ले ले झूमेंगे चंचल नदी के लहर में I
कभी भूलो कभी भटको ,तो आओ मेरे शहर में
कभी रो जाओ, कभी खो जाओ ,चलो स्वप्निल दहर में I
कभी जब रिमझिम से गिरे फुहार,आई हो बागों में बहार
कभी दुनिया से हो जाए मन ये बेज़ार और निराश
साथ चाय पी लेंगे नए ढाबे पर रात्री के सर्द पहर में !
कभी भूलो कभी भटको ,तो आओ मेरे शहर में ,
मेरे शहर की हर धूप है ख़ुशनुमा चांदनी सी है,
मेरे शहर की हर शाम गुनगुनाती है सुरीले प्रेम- गीत,
मेरे शहर का माहौल है राधा-कृष्ण सा मनमीत !