कब सुनोगी माँ काली
कब तक दुर्भाग्य का रहेगा धाक,
उड़ता है नित नूतन मजाक।
कह क्या न तुझसे आश करूँ,
नीरस पथ पर यूँ हीं दिन रात चलूँ।
किस शिखर पर जा बैठी आली,
चिल्लाऊँ किस ओर हे माँ काली ।
मिटा न पाऊँ मन की ज्वाला,
शपथ तुझे कब खुलेगा सौभाग्य ताला ।
है जीवन में एक से एक अडचन,
उपहासिक जीवन बन गया प्रति क्षण ।
क्यों याद दिखाती राम कृष्ण की जीवन गाथा,
उनके जीवन में भी आए कितने बाधा ।
उनका क्या❓ थे ईश्वर के वो अवतार,
सहनशीलता थी उनका अपार।
हम हैं धरा के तुच्छ मानवी,
जाने तू क्या पीड़ा मान की ।
होगा अखिल जीवन का शेष खाक,
घुट घुट जीवन का पिसता रहेगा चाक ।
कब तक रहेगा दुर्भाग्य का धाक ।
उमा झा