##कब मिटेगी जीवन की कारा##
संक्षिप्त जीवन की धुरी में,
याद आते जो पुष्पपथ पर,
दूर तक दिखता न कोई,
हाय! यह कैसा समय है,
हर दिशा है रिक्त सूनी,
पर भरा है दुःख सारा,
कब मिटेगी जीवन की कारा।।1।।
देह है पर मानव नहीं है,
शिखर है पर तल नहीं है,
कूकती कोकिल के स्वर में,
मधुरता है पर रस नहीं है,
अरे मित्र!पीछे मुड़कर न देखो,
कौन किसका है सहारा,
कब मिटेगी जीवन की कारा।।2।।
एकान्त में बस एक रहकर,
नहीं बनेगी बात सहकर,
अग्निपरीक्षा के क्षणों में,
शान्त रहकर, मौन रख लो,
कटु अनुभवों को भी चख लो,
फिर बजेगा शुभ एकतारा,
कब मिटेगी जीवन की कारा।।3।।
उलटकर मत देखना प्रिय,
जग निशा है नींद में हम,
नहीं ज्ञात है, कब उठेंगें,
नहीं ज्ञात है, दिन कब उदय हो,
सावधान! बस ठहर जाओ,
कौन कब करले किनारा,
कब मिटेगी जीवन की कारा।।4।।
##अभिषेक पाराशर##