कब तलक
दर्दे गम को साथ लेकर कब तलक चलते रहोगे ।
अंतर्मन की वेदना में कब तलक जलते रहोगे ।।
माना कि जो कुछ हुआ वह बुरा था,होना नहीं था ।
डूबकर उस शोक में यूं कब तलक गलते रहोगे ।।
अपने सर्जक खुद बनो तो बात ही कुछ और होगी ।
दूसरों के सांचों में तुम कब तलक ढलते रहोगे ।।
जिंदगी में छल कपट को छोड़कर शांति मिलेगी ।
आस्तीनों के सांप बनकर कब तलक पलते रहोगे ।।
यह जमाना अच्छे लोगो की क़दर करता रहेगा ।
दे बुराई दूसरों को कब तलक खलते रहोगे ।।
दूसरों को दुःख देकर तुम सुखी न रह हो सकोगे ।
ऐंसे अपने आप को तुम कब तलक छलते रहोगे ।।
भाग्य में ही था नहीं जो कुछ गवां बैठे हो तुम ।
अब भला फिर हाथ अपने कब तलक मलते रहोगे ।।
– सतीश शर्मा सिहोरा, जि. नरसिंहपुर म.प्र.