कब तक वारन्ट
कब तक वारन्ट..
वारन्ट. वारन्ट. वारन्ट,कब तक वारन्ट
वाह रे न्याय,मानवता के पूजारियो…
कब जागेगी मन की आत्मा,कब खुलेगी न्याय की पट्टी
कब चतुर्थ स्तम्भ जागेगा,और कब मां को शांति मिलेगी
सिर्फ मै मै मै करने से कुछ नही
सभ्यता जब सभ्यता कहलाती है
जब जमी़र हो,मानव मे मानवता हो
आज किस से उम्मीद रखे
सात साल से दर दर भटके
फिर भी मानवता मे अटके
आज दरिन्दो को मानव कहना चुल्लू का पानी है
इसलिए तो आज न्याय भौकते कुत्ते की लगोटी है ……
वारन्ट. वारन्ट. वारन्ट,कब तक वारन्ट
वाह रे न्याय,मानवता के पूजारियो….
वाह रे जमाने, आग जब सीने मे लगती है
नोचे चार एक को, फिर उसे निर्भया कहते है
कब तक सेकोगे अपनी गोठियां
अन्याय के पूजारियो
कब समझोगे उस मां की हालत
ऊँचे पदो पै आसीन हरामियो
जब एक का बटुआ खो गया
अगले दिन मिल गया
और वो मां सात साल से लड़ रही,( घूम )रही, भटक रही
फिर भी आज तक …
सुनने मे आ रहा है …..
वारन्ट. वारन्ट. वारन्ट….
वारन्ट. वारन्ट. वारन्ट,कब तक वारन्ट
वाह रे न्याय,मानवता के पूजारियो….
{ सद्कवि }
प्रेमदास वसु सुरेखा