कब तक याद रखें हम प्रेमचंद, महादेवी वर्मा को
नहीं मिलता हमारी रचनाओं का कोई खरीददार
कविताएं पहुंच गई हाशिए पर शिल्प हुआ बेकार
कब तक याद रखेंगे हम प्रेमचंद, महादेवी वर्मा को
कब चर्चित कृतियां ही बनी रहेंगी यहाँ पर असरदार
राजदरबारों में चमचागिरी करने वालों की क्या कहना
कूड़ा करकट भी हो उनका तो मिल जाये उन्हें पुरस्कार
एक बात समझलो देश का अलख जगाने की सोचते है
जो नवजागरण चाहें वो दिल से बने है सच्चे साहित्कार
पूँजीवाद का खेल इस खेल में भी बड़ा निराला देखा है
रद्दी में जाती देखी वो रचना जो देश जगाने को थी तैयार
कब तक निराला कब तक नागार्जुन को पढ़े और जिये
जब वरिष्ठ कविवर भी ना मिटा सकें साहित्य में अंधकार
आज विधाता तूने ये हाल कर डाला क़लम पकड़ा डाली
जब चोरी छीनाझपटी करें कवि ,अनमोल सत्य के रत्नहार
अशोक अपना ह्रदय निकाल कहाँ तक ले जाये बता मुझे
आँसुओ से नमकीन क़लम कहाँ तक सहती वो अत्याचार
कोई रियायत दें मुझे मेरे मौला की पहचान बने हमदर्द की
दिनकर जैसा नवीन बनूँ हितेषी जैसा कहलाऊँ रचनाकार
अशोक सपड़ा हमदर्द